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सिविल कानून

कोई भी महिला मातृत्व राहत से वंचित नहीं

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 25-Aug-2023

अन्वेशा देब बनाम दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण

गर्भवती कामकाजी महिलाएँ मातृत्व लाभ की हकदार हैं और उन्हें मातृत्व लाभ के तहत राहत से वंचित नहीं किया जा सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

अन्वेशा देब बनाम दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि गर्भवती कामकाजी महिलाएँ मातृत्व लाभ की हकदार हैं और उन्हें मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत राहत से इनकार नहीं किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्त्ता किशोर न्याय बोर्ड, नई दिल्ली में दैनिक शुल्क के आधार पर कानूनी सहायता हेतु अधिवक्ता के रूप में कार्यरत था।
  • अपने संविदात्मक रोज़गार के दौरान, याचिकाकर्त्ता ने अप्रैल 2017 में एक बच्चे को जन्म दिया और 6 अक्तूबर 2017 को सात महीने के मातृत्व अवकाश के लिये आवेदन किया।
  • याचिकाकर्त्ता द्वारा सदस्य सचिव को आवेदन के संबंध में एक पत्र दिया गया था जिसमें उसे मातृत्व लाभ देने का अनुरोध किया गया था, 21 अक्टूबर 2017 को दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLSA) को एक ईमेल भी भेजा गया था।
  • याचिकाकर्त्ता को दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLSA) से उसके ई-मेल पर 31 अक्तूबर, 2017 को एक उत्तर मिला, जिसमें कहा गया था कि मातृत्व लाभ के लिये उसके अनुरोध को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया था कि दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLSA) के तहत मातृत्व लाभ देने का कोई प्रावधान नहीं है।
  • संबंधित प्राधिकारियों के निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने दिल्ली नगर निगम बनाम महिला श्रमिक (मस्टर रोल), (वर्ष2000) पर भरोसा जताया जिसमें यह माना गया था कि किसी महिला को उसकी गर्भावस्था के परिपक्व चरण के समय कठिन श्रम करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है तथा वह प्रसव से पहले और बाद में निश्चित अवधि के लिये मातृत्व अवकाश प्राप्त करने की हकदार होगी। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायालय ने गर्भवती महिला को राहत देते हुए कहा है कि “चूँकि, याचिकाकर्त्ता द्वारा प्रसवपूर्व या प्रसवोत्तर कोई चरम चिकित्सा या अन्य आपात स्थिति प्रस्तुत नहीं की गई है, वह प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम , 2017 के तहत 26 सप्ताह की समय अवधि के लिये लाभ की हकदार होगी। इस आदेश की प्राप्ति की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर प्रतिवादी द्वारा आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।”

कानूनी प्रावधान

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 2017

  • प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 – एक ऐसा कानून है जो मातृत्व के समय महिलाओं के रोज़गार की रक्षा करता है।
    • यह अधिनियम 10 या अधिक कर्मचारियों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होता है।
  • इस अधिनियम को 2017 में संशोधित किया गया था और मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 दिनांक 1 अप्रैल, 2017 को लागू हुआ।
  • संशोधित अधिनियम में निम्नलिखित प्रमुख परिवर्तनों को शामिल किया गया था:
    • मातृत्व अवकाश की अवधि: इसमें मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई।
      • पहले यह लाभ प्रसव की अनुमानित तिथि से छह सप्ताह से पहले नहीं लिया जा सकता था, जिसे बढ़ाकर आठ सप्ताह कर दिया गया है।
      • जिस महिला के दो या दो से अधिक बच्चे हैं, उसे मातृत्व लाभ 12 सप्ताह का मिलता रहेगा, जिसका लाभ अपेक्षित प्रसव की तिथि से छह सप्ताह से पहले नहीं लिया जा सकता।
    • घर से काम की उपलब्धता: यह प्रावधान संशोधन अधिनियम द्वारा पेश किया गया था और इस विकल्प का लाभ मातृत्व अवकाश की अवधि के बाद नियोक्ता और महिला द्वारा पारस्परिक रूप से तय की गई अवधि के लिये लिया जा सकता है।
    • क्रेच सुविधाएँ: 50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक प्रतिष्ठान को धारा 11A के अनुसार निर्धारित दूरी के भीतर क्रेच सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
      • महिला को एक दिन में क्रेच में चार बार जाने की अनुमति होगी जो उसके विश्राम के अंतराल में शामिल होगा।
    • दत्तक ग्रहण और कमीशनिंग माताओं के लिये प्रसूति अवकाश: इस विधेयक में निम्नलिखित को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश देने का प्रावधान है:
      • ऐसी महिला जो कानूनी तौर पर तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है; और
      • एक कमीशनिंग माता (एक कमीशनिंग माता को एक ऐसी जैविक माता के रूप में परिभाषित किया जाता है जो अपने अंडे का उपयोग किसी अन्य महिला में प्रत्यारोपित भ्रूण बनाने के लिये करती है।)

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015

किशोर न्याय बोर्ड

  • किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा - 4 किशोर न्याय बोर्ड से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि –
  • किशोर न्यायिक बोर्ड - (1) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए सरकार, प्रत्येक जिले में एक या अधिक किशोर न्याय बोड़ों को (किशोर न्यायिक बोर्ड) इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के संबंध में शक्तियों का प्रयोग करने और उसके कृत्यों का निर्वहन करने के लिये, स्थापित करेगी।

(2) बोर्ड एक ऐसे महानगर मज़िस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मज़िस्ट्रेट, जो मुख्य महानगर मज़िस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मज़िस्ट्रेट (जिसे इसमें इसके पश्चात प्रधान मज़िस्ट्रेट कहा गया है) न हो, जिसके पास कम से कम तीन वर्ष का अनुभव हो और दो ऐसे सामाजिक कार्यकर्त्ताओं से मिलकर बनेगा जिनका चयन ऐसी रीति से किया जाएगा, जो विहित की जाए और उनमें से कम से कम एक महिला होगी। यह एक न्यायपीठ का रूप लेगा और ऐसी न्यायपीठ को वही शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) द्वारा यथास्थिति, किसी महानगर मज़िस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मज़िस्ट्रेट को प्रदत्त की गई है।